आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी (जिनमें फ़कीरी का गुण हीं ज्यादा था)

द्विवेदी जी प्रकृति के गायक थे। बाह्य प्रकृति के साथ मानव प्रकृति के और भी ज्यादा। जिस तरह हाइड्रोजन और ऑक्सीजन मिलकर जल बन जाते हैं और उनका स्वभाव अलग होता है। उसी तरह से विभिन्न संस्कार लिए उनके पात्र भी अलग छटा से आते हैं। उनके पात्र को समझने के लिए खाँचे में बँधी दृष्टि काम नहीं आती और मजे की बात हैं दार्शनिक दृष्टि और भी काम नहीं आती। उनके पात्र दार्शनिक दृष्टि के पात्र नहीं है और बड़े मूल्य के लिए सीमा का अतिक्रमण करते हैं। सीमा में बँधना शायद खुद द्विवेदी जी हीं पसंद नहीं करते थे। उनके लिए मूल्य प्रकृति से प्राप्त होता था जो बहुदा उद्दात हुआ करता थे। उन्होंने एक तरह का ट्राई का निर्माण किया था कर्म ज्ञान भक्ति का बाणभट्ट की आत्मकथा में। 


सौरभ कुमार