छठपर्व --) सनातनता की प्राप्ति हेतू महामृत्युंजय व्रत

छठपर्व केवल सूर्यास्त तथा सूर्योदय के एक दिन के अर्ध्य का पर्व नहीं है। यह सनातनता की प्राप्ति का पूरी निष्ठा के साथ संकल्प पर अटल रहने का पुन: पुन: जीवन प्राप्ति के लिये अपने समर्पन का व्रत है।

महामृत्युंजय महामंत्र के द्वारा शिव वर्त्तमान जीवन, आयु के संकट की रक्षा करते हैं। व्रत के रूप में संकल्प के साथ तत्‍ सत्‍ की स्थिति की प्राप्ति के लिये यह महामृत्युंजय व्रत है। ताकि यह नाशवान रूप भी परिवर्तित होकर सनातन रूप में आनंद का भोग कर सके।

यह जगत संपूर्ण रूप से नाद बिंदु का सतत फैलाव और संकुचन है। इसलिए यह जगत लय, प्रलय और नूतन रूप में सृजन पाता है। अत: अगर यह कहें कि परमात्मा, आत्मा और यह प्रकृति सनातन है तो यह भी गलत नहीं होगा। कारण सदा एकरस है। रूप का परिवर्तन सूक्ष्म और स्थूल की लीला है। सूर्य इस सृजन लीला की केन्द्रस्थली है। यह चेतना को भी समेटे है। अत: यह अगर प्राण को दिशा दे तो यह भी गलत नहीं होगा।

वेद की स्थापना अग्नि- सोम रूप की है। अत: सूर्यास्त रात्रि (सोम) तथा सूर्योदय (अग्नि) की भी लीला स्थली यह छठ पर्व है। यह अगर समर्पण के द्वारा अपने अस्तित्व को सनातन रूप से क्रमबद्धता देने का प्रयास है तो  छठपर्व -- सनातनता की प्राप्ति हेतू महामृत्युंजय व्रत हीं है। महामृत्युंजय मंत्र में मृत्यु का निषेध नहीं है। यह जीवन के रहस्य तक जाने के लिए सहज मृत्यु की कामना है ताकि हम अमृत तत्व को प्राप्त कर पायें। शरीर और अस्तित्व हीं धर्म का साधन है। बिना अस्तित्वान के लिए धर्म की कल्पना भी असंभव है। मैं कौन हूँ यह प्रश्न हीं सारे परिवर्तन की साधना है। निर्भ्रांत उत्तर की प्राप्ति इस प्रश्न का गतंव्य है। ईश्वर हीं सत्य रूप में भासित है। अत: उसके रूप का दर्शन हीं सत्य रूप में आकार है। सत्य को ईश्वर रूप में देखने पर सत्य की उपलब्ध सीमितता दृष्टि की संकुचन रूप का कारण भी हो सकता है।    

शुभमस्तु 

सौरभ कुमार