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प्रकृति सत्य है। प्रकृति विज्ञान भी है। प्रकृति धर्म भी है। प्रकृति दर्शन भी है। प्रकृति एक तरफ ब्रह्मांड में फैला है। प्रकृति चेतना में भी फैला है। प्रकृति अचेतन (जड़ तथा पदार्थ) तथा चैतन्य भी है। प्रकृति के नियम सत्य हीं धर्म है। इसी से जीवन चलता है। प्रकृति सिर्फ पेड़-पौधा हीं नहीं यह समस्त जीवन है। मशीन में भी प्रकृति है। प्रकृति ब्रह्म में ईश्वरता समायी है। प्रकृति सब में है। प्रकृति सबका है। प्रकृति के लिए सब हैं। प्रकृति अद्वैत है।
प्रकृति का हीं आयुर्वेद है तो एलोपैथ भी प्रकृति का हीं है। एक प्रकृति के गुण अलग-अलग हैं।
प्रकृति का सत्य ज्योतिष है। ज्योतिष, हस्तरेखा मानव या जीव पर ब्रह्मांड़ के पड़े प्रभाव से पैदा होता है। ज्योतिष, हस्तरेखा का लक्ष्य जीवन की शिक्षा, मानव संबंध, व्यापार, व्यवसाय, जीवीका, मानसिक शांति, ध्यान तथा विश्वबंधुत्व है। यही सच्चा प्रकृति साहित्य भी है।
प्रकृति में समस्या भी वास्तविक होता है। प्रकृति में समस्या का समाधान भी वास्तविक होता है।
"हमें समस्या का समाधान वाली जिदंगी चुननी है।"
आज की संस्कृति विस्तृत संस्कृति है जो सनातन संस्कृति (प्रकृति धर्म) से हीं चालित होगी।प्रकृति की गोद वह पालना है जहाँ अब मानव की संस्कृति और सभ्यता विकसित होगी। मानव का विकास प्रकृति के सहयोग से होना है। अब हमें प्रकृति और प्रकृति के संसाधन का मालिक नहीं बनना है। बल्कि प्रकृति वह पोषण है जो हमारे अस्तित्व की खुराक है। हमें मानव की सारी संभावना को प्रकृति के आध्यात्मिक रूप के साथ विकास करना है। यह हिंदू + सिक्ख + जैन + बौद्ध + पारसी + ईसाई + इस्लाम के एक रूप से चालित नहीं हो पायेगी। आज राम + कृष्ण + बुद्ध + महावीर + नानक जितने महत्वपूर्ण हैं जरथ्रुस्ट + लाओत्से + कन्फ्यूसियस भी उतने हीं महत्वपूर्ण है। जीसस + मुहम्मद की शिक्षा का भी अपना महत्व है। यशोदा मैया के गोद में भगवान कृष्ण के वात्सल्य-शक्ति के बाद हीं मरियम के गोद में ईसा के रस को समझा जा सकता है। आज राधा-कृष्ण के प्रेम को अपने से छोटे उम्र के पति की स्वीकार्यता की संस्कृति में हीं ढलने से समझा जा सकता है।
With The Blessing Of Late N.K.Sharma & Kamla Devi Sharma